आज तुम जो
इतना हो हल्ला कर रहे हो अपनी अपनी रोटी सेक रहे हो मालूम है मुझे कुछ नही होगा दो
चार दिनों बाद सबका मुंह बंद होगा यही रीत है यही सिस्टम है फिर कोई पत्रकार कहीं दबा
कुचला पाया जाएगा फिर वही राग अलापा जाएगा कुछ भी नही बदलेगा, दोस्तों फिर एक और मुकेश
कहीं न कहीं दफनाया जाएगा सिस्टम के आगे हम सब नतमस्तक हैं
यहां फिर से किसी की लाश पर राजनीति गरमाया जाएगा
क्यूं कोई ठोस कदम उठाता नही किसी पत्रकार के लिए आवाज बुलंद करता नही जनहित के मुद्दे
उठाने वाला दूसरों के लिए लड़ सकता है सबसे लेकिन खुद के लिए लड़ पाता नही ये लाचारी
ये बेबसी तमाचा है उन तमाम लोगों के मुंह पर जो बात तो करते हैं सुरक्षा की लेकिन असल
मे सुरक्षा दे पाते नही दे पाते नही।