September 12, 2023


महासमुन्द जिले में गिरते भू-जल स्तर हेतु जल संवर्धन का काम तेजी से हो रहा

महासमुंद : दुर्लभ वस्तु की सुलभ प्राप्ति और सुलभ वस्तु की दुर्लभ प्राप्ति ही वस्तु का मूल्य तय करती है। यह युक्ति पानी पर बिल्कुल सही बैठती है। आज हम इसे सुलभ समझकर जिस तरह इसका दुरूपयोग दोहन कर रहे है। जब जल हमें इतनी सुलभता से नहीं मिलेगा तब शायद इसकी अहमियत का पता चलेगा। मुख्यमंत्री श्री भूपेश बघेल ने पानी के दुर्लभ प्राप्ति को समय रहते जान लिया। इसके लिए उन्होंने छत्तीसगढ़ के चार चिन्हारी नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी जैसी महत्वकांक्षी योजना लागू की। इससे ग्रामीण की आर्थिक-सामाजिक स्थिति में पहले से और अधिक सुधार हो रहा है। महासमुन्द जिले में गिरते भू-जल स्तर हेतु जल संवर्धन का काम तेजी से हो रहा है। नरवा कार्यक्रम के तहत् पिछले पौने पाँच साल में नदी-नालों के पुनर्रोद्धार के काम किए गए है। जिले में गौठानों की संख्या में बढ़ोतरी हुई है। वहीं नालों के बधान का लक्ष्य भी दिया गया है। इस योजना के तहत मनरेगा से 2019-20 में 21 नरवा के उपचार से 1694 से अधिक हितग्राहियों को खरीफ फसल के साथ ही रबी फसलों के लिए पानी मिल रहा है। पहले बहुत मुश्किल सितम्बर माह तक बहने वाले नरवा के ड्रनेज ट्रीटमेंट और केंचमेंट एरिया ट्रीटमेंट के बाद अब माह नवम्बर तक बह रहा है। नरवा के पुनर्जीवन के लिए किए गए योजनाबद्ध कार्यों ने किसानों की खुशहाली और समृद्धि का रास्ता खोल दिया है। खेती-किसानी को मजबूती मिल रही है। महासमुंद के 40 नालों में संरचानाओं का निर्माण जारी है। छत्तीसगढ़ शासन महत्वाकांक्षी योजना नरवा, गरवा, घुरवा, बाड़ी के तहत वन परिक्षेत्र बागबाहरा अंतर्गत मचका नाला में नरवा विकास कार्य कराया गया है, ’’मचका नाला’’ का उद्गम महासमुन्द जिला के बागबाहरा तहसील के अंतर्गत 3 किमी. की दूरी पर स्थित ग्राम आमगांव से हुआ है। जिसमें मचका नाला की जल प्रवाह की दिशा दक्षिण से पूर्व की ओर है, जो आमगांव से सिर्री, पठारीमुड़ा, लमकेनी, तिलाईदार, सरायपाली, मोंगरापाली आदि ग्रामों के वनक्षेत्र से होकर बहता है, एवं जोकं नदी में जाकर मिलती है। ’’मचका नाला’’ के किनारे बहुत सारे राजस्व ग्राम है, उक्त संबंधित वन क्षेत्रों में नरवा विकास योजना से सिंचाई सुविधाओं के विस्तार, भूमिगत जल के सवं र्धन व मृदा सरं क्षण से जल सरंक्षण के क्षेत्रों में नरवा विकास योजना कृषकों ग्रामीणों व वन में रहने वाले अन्य वन्यप्राणी, जीव जन्तु के लिए वरदान साबित हुआ है। ’’मचका नाला’’ के वनक्षेत्र में लूज बोल्डर चेक डेम 77 नग का निर्माण किया गया है, यह एक प्रकार का अस्थाई बांध होता है, जो जल प्रवाह वेग को कम करता है, एवं मिट्टी के कटाव को रोकने के लिए जल निकासी बनाया जाता है, मुख्य रूप से इसका उपयोग पानी के वेग का नियंत्रित करना होता है। चेक डेम का उपयोग मृदा सरं क्षण एवं भूमि सुधार के लिए भी किया जाताहै।लूज बोल्डर चेकडेम उस नदी या नालों में बहने वाले पानी की गति को कम कर देता है, जिस पर वे बनाये जाते है। पानी की कम गति से पानी को जमीन में घुसने या तेजी से अंदर जाने के लिए पर्याप्त समय मिल जाता है, जिससे उस क्षेत्र में जल स्तर बढ़ जाता है। संरचनाओं के निर्माण से प्राकृतिक रूप से संधारित जल से विशेष लाभ लिया जा रहा है, फलस्वरूप पूर्व में जो कृषक अल्प वर्षा के कारण सिंचाई की असुविधा होने से हतोत्साहित होते थे एवं साल में केवल वर्षा ऋतु में भी फसल का उत्पादन करते थे, वे कृषक ’’मचका नाला’’ में नरवा विकास के कारण वर्तमान में साल में दोहरी फसल का उत्पादन करते है एवं सिंचाई की उत्तम व्यवस्था उपलब्ध होने से फसल उत्पादन के रकबे में भी वृद्धि हुई है, जिससे कृषकों के आय में वृद्धि हुई है। मचका नाला में नरवा विकास योजना के कारण उक्त नाला से लगे आस पास के ग्रामीणों को रोजगार मिला है। ’’मचका नाला’’ में निर्मित संरचना पूर्णतः प्राकृतिक रूप से कार्य करती है, जिसके क्रियान्वयन हेतु किसी अन्य प्रकार के भौतिक साधन की आवश्यकता नही है, जो पर्यावरण की दृष्टि से अत्यंत हितैषी है। मचका नाला में नरवा विकास कार्य से केवल कृषि क्षेत्र में ही लाभ नही हुआ अपितु मचका नाला का अधिकम भाग जंगली क्षेत्र से होकर बहने के कारण जंगली जानवरों को उनके प्राकृति क्षेत्र में ही जल उपलब्ध कराता है, जो वन्यजीव हितैषी है। जिसे जल स्तर के गिरावट को रोकने में सहायता मिलती है। अतः ’’जल ही जीवन है’’ वाक्य को सार्थक करते हुए मचका नाला में हुए नरवा विकास कार्य में अपनी अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका है।


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