February 01, 2025


अपनी बात सीधी साफ : लुट मची है लुट, लुट सको तो लुट लो

महेश गोयन

                                    कमाने का भी क्या क्या रास्ते अपनाते हैं लोग धन के आगे बेबस हैं लोग एक कहावत है बाप बड़ा न भईया सबसे बड़ा रुपईया इस कहावत का सटीक पालन कर रहे हैं ये बड़े बड़े कॉर्पोरेट घराने यूं तो कहने को 25 पैसे 50 पैसे का जमाना खत्म हो गया है। जोकि केवल आम नागरिकों, छोटे व्यापारियों और छोटे बाजारों से लेकिन इस 25 - 50 पैसे से ही कई करोड़ों रुपए के वारे न्यारे कर रहे हैं ये बड़े बड़े पूंजीपति लोग जिसे हम आप हमेशा नजरअंदाज कर देते हैं। और इसी का फायदा उठा रहे हैं ये लोग सोचिए भारत की जनसंख्या है लगभग डेढ़ सौ करोड़ के आसपास अब इनमे से कितने लोग होंगे जो मॉल मे खरीदारी करते हैं या मेडिकल स्टोर से दवाइयां लेते हैं|

                                 मुझे लगता है लगभग सभी लोग कुछ लोगों को छोड़ दिया जाए तो भी बड़ी संख्या मे लोग आज के युग मे ज्यादातर मॉल से ही खरीदारी करते हैं ठीक उसी प्रकार से आज के समय मे हर कोई किसी न किसी रूप मे दवाई का भी सेवन कर ही रहा है और इन्ही सब मे बड़ा खेल खेल रहे हैं ये कॉर्पोरेट घराने इनका कहना है कि ये 50 पैसे यदि 50 पैसे से कम हुए तो गिनती नही की जाएगी लेकिन 50 पैसे से ऊपर हुए जैसे कि 68 पैसे 58 पैसे तो इनकी गिनती सीधे सीधे 1 रुपए मे की जाएगी अब आप सोचिए एक दिन मे भी यदि 1 करोड़ लोग भी दवाई या मॉल मे सामान लेते हैं तो इस 25 - 50 पैसे से सीधे तौर पर इन्हें कितने का फायदा पहुंच रहा है वो भी हराम का आप अंदाजा लगा सकते हैं। और चाहें तो आवाज भी उठा सकते हैं क्योंकि पैसा आपका है।

                                      आज की घटना है वैसे तो मैं मॉल से खरीदारी करना पसंद नही करता लेकिन बात घर की थी तो चला गया मां के लिए कोदो कोदई लेने शुभम के मार्ट सरोना वहां से मैंने 65 रुपए के दर से 6 किलो कोदो लिया जिसका कुल रकम 415.68 चार सौ पंद्रह रुपए अड़सठ पैसे हुए मुझसे 416 चार सौ सोलह रुपए लिए गए मैंने पूछा और विरोध किया तो लगे नियम कानून बताने सवाल यह है कि क्या हम कभी बाजार से खरीदारी करते हैं तो उन छोटे दुकानदारों को या सब्जी बेचने वालों को 50 पैसे के बदले एक रुपए देते हैं जवाब है नही उलटा उनसे मोलभाव कर के रूपए ही कम करवा लेते हैं और वे सब कम कर भी देते हैं लेकिन इन बड़े बड़े कॉर्पोरेट घराने जो एक सिंडिकेट चला रहे हैं उन्हें इन सब से कुछ लेना देना नही उन्हें तो केवल आम नागरिकों को लूटने से मतलब है और अपने जेब भरने से लेकिन हम आपको जरूर सोचना चाहिए कि यह कितना सही है आप मॉल जाओ या दवाई लो कोई समस्या नही है समस्या है तो वो केवल बेवजह अतिरिक्त पैसे लिए जाने से है जो कि मुझे लगता है गलत है|

                                       मैं कहना चाहूंगा उन तमाम बड़े कॉर्पोरेट घराने से यदि मेरी बात वहां तक पहुंचती है तो ये जो आप आमजनों से अतिरिक्त पैसे लेकर अपनी कमाई कर रहे हैं तो आप से अच्छे वो लोग हैं जो कम से कम शराफत से हाथ फैला कर मांगते तो हैं आप लोगों की तरह यूं खुलेआम लोगों को लुटते तो नही हैं बिजनेस के नाम पर। ये भी एक प्रकार से बहुत बड़ा भ्रष्टाचार है जिसे हम सब बढ़ावा दे रहे हैं। सरकार को इस ओर कोई ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। जिससे इस पर अंकुश लगाया जा सके।


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