September 03, 2024


कोरोना पर बड़ी रिसर्च : अंबेडकर अस्‍पताल की रिसर्च यूनिट ने बायोमार्कर किट बनाया, पहले स्टेज में ही ट्रेक होगी बीमारी

रायपुर। छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के डॉ. भीमराव अम्बेडकर हॉस्पिटल ने मल्टी-डिसिप्लिनरी रिसर्च यूनिट (एमआरयू/ बहु विषयक अनुसंधान इकाई) के वैज्ञानिकों की टीम ने ऐसा बायोमार्कर किट विकसित किया है। यह किट कोविड-19 महामारी संक्रमण की गंभीरता का अनुमान प्रारंभिक चरण में ही लगा लेगा। कोविड-19 के प्रारंभिक चरण से प्रारंभ किये गये इस शोध के परिणाम हाल ही में विज्ञान पत्रिका साइंटिफिक रिपोर्ट्स (https://www.nature.com/articles/s41598-024-70161-8) में प्रकाशित हुई है। जो कि, प्रतिष्ठित नेचर प्रकाशन समूह द्वारा प्रकाशित किया गया है। रिसर्च के क्षेत्र में यह दुनिया का 5वां सबसे अधिक संदर्भित किया जाने वाला रिसर्च जर्नल है। 

कोविड-19 डायग्नोस्टिक टेस्ट किट को किया विकसित 

कोरोना महामारी की शुरुआत में जब देश के कई प्रमुख वैज्ञानिक नए कोविड-19 डायग्नोस्टिक टेस्ट किट विकसित करने में जुटे हुए थे। तब रिसर्च पब्लिकेशन के करेस्पोंडिंग लेखक(प्रिसिंपल इन्वेस्टिगेटर) डॉ. जगन्नाथ पाल (एमबीबीएस, पीएचडी, हार्वर्ड कैंसर संस्थान (बोस्टन यूएसए) से पोस्टडॉक. की उपाधि प्राप्त) वरिष्ठ वैज्ञानिक, एमआरयू, ने कोविड-19 महामारी के प्रबंधन के उपरोक्त बुनियादी मुद्दे की दिशा में विचार करना शुरू किया था। इसका मुख्य उद्देश्य था कि, भविष्य में किसी भी महामारी की स्थिति से निपटने के लिए भी उपयोग में लाया जा सके। 

प्रमुख वैज्ञानिक बोले- प्रारंभिक चरण में ही चल जायेगा बीमारी का पता 

कोविड-19 प्रोग्नोस्टिक बायोमार्कर किट (प्रारंभिक स्तर में रोग की गंभीरता का पूर्वानुमान) को विकसित करने वाले प्रमुख वैज्ञानिक एवं टीम लीडर डॉ. जगन्नाथ पाल के अनुसार, कोरोना महामारी के प्रारंभिक चरण में संसाधन एवं एंटी-वायरस दवाओं का बहुतायत मात्रा में प्रयोग हुआ. जिससे गंभीर दवा संकट के साथ-साथ रेमडेसिवीर जैसी जीवन रक्षक दवाओं का संकट भी उत्पन्न हुआ। शुरुआती चरण में यह पता लगाना मुश्किल होता था कि किन कोरोना रोगियों को मेडिकल की अग्रिम सुविधा की आवश्यकता है अथवा नहीं ? इसलिए पूर्वानुमानित परिणाम के आधार पर रोगियों के संक्रमण की गंभीरता को अलग-अलग श्रेणी में विभाजन करना आवश्यक था जिससे कि इन संसाधनों का गंभीर कोरोना रोगियों में उपयोग किया जा सके. लेकिन उस समय कोई भी ऐसा टेस्ट/जांच उपलब्ध नहीं था जिससे कि प्रारंभिक चरण में ही कोरोना रोगियों की गंभीरता का पता चल सके।


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