May 02, 2022


छत्तीसगढ़ में नौकरी खो जाने के भय से मुक्ति के लिए मनरेगाकर्मियों ने की 400 किमी दांड़ी यात्रा

यात्रा के 18वें दिन रायपुर पहुंचे मनरेगाकर्मियों ने बूढा तालाब परिसर में डेरा डाला

  • मनरेगाकर्मी चाहते हैं कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल उन्हें नियमित किये जाने की घोषणा करें
  • 15 सालों से संविदा पर काम करते चले आ रहे है मनरेगाकर्मी
  • प्रत्येक वर्ष कार्य के मूल्यांकन के आधार उनकी सेवावृद्धि का प्रावधान है
  • ऐसे में प्रत्येक वर्ष मनरेगाकर्मियों को नौकरी खो जाने का भय लगा रहता है
  • गांधीवादी आंदोलन से इसी नौकरी खो जाने के भय से मुक्ति पाना चाहते हैं मनरेगा कर्मचारी

रायपुर। छत्तीसगढ़ में मनरेगाकर्मियों का आंदोलन देशभर में चर्चा का विषय बन गया है। 12 अप्रैल 2022 से दंतेवाड़ा स्थित माता दंतेश्वरी मंदिर से शुरू हुई मनरेगाकर्मियों की दांड़ी यात्रा 47 डिग्री सेल्सियस तापमान की चिलचिलाती धूप में भी नहीं रुकी। आंदोलन के 18वें दिन श्रमिक दिवस की पूर्व संध्या पर 30 अप्रैल को मनरेगाकर्मियों का जत्था राजधानी रायपुर पहुंच गया। रायपुर शहर के निकट पहुंचने पर मनरेगाकर्मियों की यह दांडी यात्रा तिरंगा रैली के रुप में परिवर्तित हो गयी थी। 

छत्तीसगढ़ के इतिहास में यह पहला आंदोलन है जिसमें कर्मचारियों द्वारा 400 किमी की दांडी यात्रा निकाली गयी। रायपुर आते आते आंदोलनकारियों की संख्या 5000 से अधिक की हो गई। दांडी यात्रा का नेतृत्व सूरज सिंह ठाकुर कर रहे हैं। उन्होंने ने बताया कि हमें विश्वास है कि प्रदेश के संवेदनशील मुख्यमंत्री भूपेश बघेल हमारी बात जरूर सुनेंगे। यह मनरेगा कर्मी अपने नियमितिकरण की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे है। 

कंडेल ग्राम में आंदोलनकारियों का हुआ अभूतपूर्व स्वागत

छत्तीसगढ़ मनरेगा कर्मचारी महासंघ के तत्वाधान में 4 अप्रैल 2022 से यह कर्मचारी निरंतर हड़ताल पर हैं। 12 अप्रैल से मां दंतेश्वरी के प्रांगण दंतेवाड़ा से रायपुर तक 400 किलोमीटर की दूरी पैदल तय करने का संकल्प लेकर 47 डिग्री तापमान में निकले यह कर्मचारी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को अपना आदर्श मानते हुए दांडी यात्रा कर रहे हैं। दांडी यात्रा के 12वें दिन यात्रा पैदल चलकर धमतरी जिले के ग्राम पंचायत कंडेल पहुंची।

जी हां यह वही कंडेल ग्राम है जहां बाबू छोटेलाल श्रीवास्तव के नेतृत्व में नहर सत्याग्रह के समर्थन में 21 दिसंबर 1920 को महात्मा गांधी छत्तीसगढ़ की पावन धरा पर पर कदम रखकर छत्तीसगढ़ में राष्ट्रीय चेतना की अलख जगाई थी।

मनरेगाकर्मियों कंडेल पहुंचने पर बनी तस्वीर बता रही थी कि छत्तीसगढ़ में गांधी जी के विचार वर्तमान दौर में भी कितने जन-जन के हृदय और छत्तीसगढ़ की माटी के कण-कण में विद्यमान है। गांधी जी ने नमक कानून के विरोध में दांडी यात्रा निकाली थी। यह मनरेगा कर्मचारी भी विगत 15 वर्षों से संविदा में कार्य कर रहे हैं। प्रतिवर्ष इनके कार्य के आकलन के आधार पर सेवावृद्धि का प्रावधान है। प्रतिवर्ष इनको अपनी नौकरी खो जाने का डर लगा रहता है। इनका कहना है कि दांडी यात्रा इसी भय से मुक्ति का आंदोलन है। संविदा प्रथा का अंत होना चाहिए। इसी लक्ष्य को लेकर  हम गांधी जी के पद चिन्हों पर चलकर दांडी मार्च शांतिपूर्ण तरीके से कर रहे हैं ताकि हमारी आवाज शासन-प्रशासन तक पहुंचा सके। 

78 लोगों की टीम ने शुरू किया था आंदोलन

78 लोगों की टीम बनाकर दंतेवाड़ा से शुरू की गई यात्रा अब धीरे-धीरे जनसैलाब में बदल गयी। जिस जिले से यह यात्रा गुजर रही थी उस जिले के मनरेगाकर्मी इस यात्रा से जुड़ते जा रहे थे। उनका स्वागत कर रहे थे, दंडवत प्रणाम कर रहे थे। पंचायत के जनप्रतिनिधि शीतल पेय, शरबत, नाश्ता और खाने की व्यवस्था कर रहे थे। 

इस यात्रा से 28 जिलों के संविदाकर्मियों को यह विश्वास हो चला है कि हम गांधी जी की तरह ही अपने लक्ष्य को अहिंसा के मार्ग पर चलकर प्राप्त कर सकते हैं। प्रदेश भर के मनरेगा कर्मी दूर-दूर से ग्राम कंडेल पहुंच रहे हैं, यात्रा में शामिल हो रहे अब देखना शेष है कि जिन रास्तों पर यह चल पड़े हैं वह रास्ता उनकी मंजिल तक पहुंचता है या नहीं? शासन इस यात्रा को किस ढंग से देखता है यह देखा जाना अभी बाकी है।
 


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