मुंबई : बॉलीवुड फिल्मों के
मशहूर विलन डैनी डेंजोंगप्पा को आपने
पर्दे पर कई दफा देखा है और पसंद किया। इनके अभिनय का हर कोई कायल है। लेकिन
इन्होंने यहां तक पहुंचने के लिए काफी पापड़ बेले। एक्टर ने फिल्मी दुनिया में
चेहरे के कारण रिजेक्शन झेले। आज इनके बारे में ही हम बात तकरने जा रहे हैं कि
इन्होंने कहां से पढ़ाई की और कैसे इंडस्ट्री से जुड़े।
'खूंखार' विलन डैनी डेन्जोंगपा का संघर्ष
बॉलीवुड फिल्मों में खूंखार विलन
बनकर सबको अपने अभिनय से डराने वाले डैनी डेन्जोंगपा आज नामी एक्टर बन चुके हैं।
इन्होंने पर्दे पर हर तरह के किरदार निभाए हैं। और आज भी दर्शकों को एंटरटेन कर
रहे हैं। लेकिन कामयाबी की इन बुलंदियों को छूना उनके लिए आसान नहीं था। उन्होंने
काफी संघर्ष किया है। अपने चेहरे के कारण रिजेक्शन और लोगों के ताने भी सुने। 'सैटर्डे सुपरस्टार' में हम आज इनके बारे में ही बात
करने जा रहे हैं।
ब्रैड पिट से मिली तारीफ और ये है
असली नाम
डैनी डेन्जोंगपा का असली नाम शेरिंग
पेंट्सो है। इनका जन्म 25 फरवरी, 1948
को सिक्किम में हुआ था। इन्होंने न सिर्फ हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में
काम किया है। बल्कि नेपाली, तमिल, तेलुगू
और हॉलीवुड इंडस्ट्री में भी अभिनय कर चुके हैं। हॉलीवुड एक्टर ब्रैड पिट ने तो 2003
में आई फिल्म 'सेवन ईयर्स इन तिब्बत' में डैनी के अभिनय के लिए उनकी तारीफ भी की थी।
खुद को इंडस्ट्री का एलियन मानते हैं
डैनी
डैनी ने पर्दे पर कांचा चीना,
बख्तावर, खुदा बख्श जैसे तमाम किरदार निभाकर
अपनी पहचान बनाई। लेकिन इस रोल से पहले उन्हें गार्ड की नौकरी मिली थी। उन्हें
उत्तर-पूर्की इलाके के आने के कारण उन्हें काफी मुसीबतों का सामना करना पड़ा था।
एक इंटरव्यू में तो उन्होंने कहा था कि वह फिल्म इंडस्ट्री में एलियन की तरह हैं।
इंडस्ट्री में होने के बावजूद वह फिल्मी व्यक्ति नहीं हैं। वह अलग-थलग रहते हैं।
वह बस अपनी नौकरी करते हैं।
बस पकड़ने के लिए दो दिन चलते थे
पैदल
डैनी ने बताया था कि उनका गांव,
आखिरी गांव है। उसके बाद कोई घर नहीं। सिर्फ एक जंगल है, जो एक सुंदर घास के मैदान की तरफ जाता है। उनके मुताबिक, उन्हें स्कूल के हॉस्टल तक जाने के लिए बस पकड़ने के लिए दो दिन पैदल चलना
पड़ता था। 'उन दिनों हम या तो पैदल या फिर घोड़े की मदद से
जाते थे। उन्होंने अपने बेटे को बताया था कि जब वह पुणे फिल्म इंस्टीट्यूट से
मुंबई आए थे तो उनकी जेब में सिर्फ 1500 रुपये थे। वह जब यहा
आए थे तो उनकी भाषा, उनका धर्म, चेहरा
सब अलग था। लेकिन फिर भी लोगों ने अपनाया।
इन तीन एक्टर्स के पर्दे पर बने थे
भाई
डैनी ने पर्दे पर शशि कपूर,
विनोद खन्ना और शत्रुघ्न सिन्हा के भाई का रोल किया है। शुरुआत में
वह इन रोल्स से सहमत नहीं थे, जब प्रोड्यूसर उनके पास ऐसे
किरदार लेकर आए थे। वह कहते थे कि 'मैं आपको कैसे उनका भाई
दिख सकता हूं, मुझे कास्ट मत करिए, आपकी
फिल्म काम नहीं करेगी।' डैनी डेन्जोंगपा ने साल 1980 में फिल्म 'फिर वही रात' को
डायरेक्ट भी किया था।
डायरेक्टर ने चेहरा देख दी गार्ड की
नौकरी
डैनी जब सिक्किम से मुंबई आए तो वह
जुहू पहुंचे। उस समय डायरेक्टर मोहन कुमार का नाम चर्चा में था। उन्हें इनके बारे
में मालूम था। सिक्किम के कई लोग बतौर गार्ड वहां नौकरी करते थे तो उनके जरिए डैनी
को बंगले में एंट्री मिल गई। लेकिन जब एक्टर बनने की बात उन्होंने डायरेक्टर को
बताई तो वह हंसने लगे औक उन्होंने गार्ड की नौकरी ऑफर की। यही बात डैनी को चुभ गई
और उन्होंने खुद से वादा किया कि वह इनके ही बंगले के बगल अपना भी एक आलीशान बंगला
बनाएंगे।
जया बच्चन थीं क्लासमेट,
रखा था नाम
डैनी ने दार्जिलिंग के बिरला विद्या
मंदिर और सेंट जोसफ कॉलेज में पढ़ाई की थी। इसके बाद इन्होंने हीरो बनने के लिए FTII
में दाखिला ले लिया था। यहीं इनकी मुलाकात जया बच्चन से हुई थी। वह
इनकी क्सालमेट थीं। उन्होंने इनका नाम डैनी रखा था। उन्होंने मुंबई की बहुत तारीफ
सुनी थी और इसीलिए वह काम के सिलसिले में महानगरी आ पहुंचे। दिनभर वह
डायरेक्टर-प्रोड्यूसर के दफ्तर के चक्कर काटते थे। रात में उन्हें जहां जगह मिल
जाती। वहां सो जाते थे।
बीआर चोपड़ा की फिल्म से फेमस
डैनी डेन्जोंगपा की किस्मत ने साथ
दिया और 1971 में उनको फिल्म मिली। 'मेरे अपने' से उन्होंने डेब्यू किया और सकारात्मक
किरदार निभाया। लेकिन 1973 में जब उन्होंने बीआर चोपड़ा की 'धुंध' में विलन का रोल किया तो वह फेमस हो गए। इसके
बाद इन्हें विलन के किरदार ऑफर होने लगे। 2003 में इन्हें
पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया था।
जब नरक से गुजरे थे डैनी
डैनी ने 'हिंदुस्तान टाइम्स' को दिए इंटरव्यू में बताया था कि
उन्हें नस्लीय भेदभाव का भी सामना करना पड़ा था। जब वह FTII में
पढ़ रहे थे तो 1962 में हुए भारत-चीन युद्ध के दौरान वह
कैम्पस से बाहर निकलने में डरते थे। क्योंकि लोग उनको घूरते थे और उन पर खुलेआम
गोरखा, चीनी, नेपाली और चिंकी जैसे तंज
कसे जाते थे। वह नरक से गुजरे थे।
अमिताभ बच्चन नहीं करना चाहते थे काम
अमिताभ बच्चन के साथ काम करने को मना
कर दिया था। डैनी ने फिल्मफेयर को दिए एक इंटरव्यू में कहा था,
'मैं खुद को अमित जी के साथ काम करने से रोकता रहा। मैंने सोचा कि
यह बहुत बड़ा अभिनेता है, जिसे सबसे अच्छी भूमिकाएँ मिलती
हैं। अगर मैं उसके साथ एक ही फ्रेम में होता तो कोई भी मुझे नोटिस नहीं करता। अगर
फिल्म हिट होती तो सारा श्रेय उन्हें जाता। लेकिन अगर यह फ्लॉप हो जाती तो उनको
दोषी ठहराया जाएगा। मैं मांजी (दिवंगत निर्देशक मनमोहन देसाई) को भी मना करता रहा,
जिन्होंने मुझे अमितजी के साथ मर्द और कुली सहित चार फिल्में ऑफर की
थीं।'