रायपुर। छत्तीसगढ़
में संपत्तियों के नामांतरण के मामले में राज्य शासन ने एक बहुत बड़ा बदलाव किया
है। राज्य में अब तक संपत्तियों के पंजीयन के बाद नामांतरण का अधिकार तहसीलदार के
पास होता था। अब यह अधिकार पंजीयन कार्यालय के रजिस्ट्रार और सब रजिस्ट्रार के
हाथों होगा। खास बात ये है कि जमीन जायदाद के कारोबार और पंजीयन प्रक्रिया के
जानकार इसे संपत्ति क्षेत्र के लिए एक क्रांतिकारी कदम बता रहे हैं। अब जमीन का
पंजीयन होने के बाद ही खरीददार के नाम नामांतरण हो जाएगा। अब इस काम के लिए भूमि
स्वामियों को पटवारी-तहसीलदार के चक्कर नहीं लगाने पड़ेंगे।
सरकार ने किया है ये
बदलाव
छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता के
प्रावधान के मुताबिक खरीद तथा बिक्री से प्राप्त भूमि अंतरण (ट्रांसफर) के सरलीकरण
हेतु किसी भूमि स्वामी के द्वारा धारित भूमि या भूमि का भाग (खसरा या भू-खण्ड),
जिनका पंजीकृत विक्रय के आधार पर अंतरण किया जाता है, ऐसे भूमि के नामांतरण हेतु प्राप्त प्रकरणों पर, उक्त
संहिता की धारा 110 के अधीन तहसीलदार को प्राप्त नामांतरण की
शक्तियां, जिले में पदस्थ रजिस्ट्रार या सब रजिस्ट्रार जो
अपने क्षेत्राधिकार में पंजीकृत विक्रय पत्र के निष्पादन हेतु अधिकृत है, को प्रदान करती है।
तैयार हो रहा है पोर्टल
नामांतरण का अधिकार रजिस्ट्रार-सब
रजिस्ट्रार को दिए जाने के साथ ही इस प्रक्रिया को लागू करने के लिए बदलाव किए जा
रहे हैं। सूत्रों के अनुसार इस काम के लिए ऑनलाइन पोर्टल तैयार किया जा रहा है। इस
पोर्टल के माध्यम से रजिस्ट्री होने के तुरंत बाद ही नामांतरण हो जाएगा। इस
प्रक्रिया से संपत्ति का फर्जी नामांतरण पूरी तरह से बंद हो जाएगा।
अब संपत्ति खरीदने वालों
को नहीं होगी परेशानी
राज्य सरकार के इस फैसले का व्यापक
असर होने की संभावना है। दरअसल, राज्य
में दशकों से यह व्यवस्था बनी हुई थी कि अगर कोई व्यक्ति जमीन, मकान या अन्य कोई संपत्ति खरीदता है तो उसका पंजीयन रजिस्ट्री दफ्तर यानी
पंजीयन कार्यालय में किया जाता है। यहां तक की प्रक्रिया आसान है। लेकिन पंजीयन के
बाद भी संपत्ति खरीदने वाला मालिक तब तक नहीं बनता है, जब तक
उसके नाम पर संपत्ति का नामांतरण या प्रमाणी करण न हो। लेकिन अब नई व्यवस्था लागू
होने के बाद संपत्ति खरीदने वालों को मालिक बनने में देर नहीं लगेगी। क्योंकि
पंजीयन होने के बाद ही रजिस्ट्रार या सब रजिस्ट्रार नामांतरण कर सकेंगे। सरकार ने
उन्हें ये अधिकार दे दिया है।
पटवारी,
तहसीलदार के पास जाने की जरूरत नहीं
नामांतरण को लेकर लोगों की परेशानी
उस समय शुरु होती थी, जब वे अपनी संपत्ति
के पंजीकृत दस्तावेज लेकर अपने क्षेत्र के पटवारी या तहसीलदार के पास जाते थे। ऐसी
हजारों शिकायतें होती थी कि पटवारी बिना लेनदेन किए नामांतरण की प्रक्रिया को आगे
नहीं बढ़ाते थे। संपत्ति खरीदने वाले से उनके मूल दस्तावेज लेने के बाद पटवारी 15
दिन से लेकर 2-3 माह का समय इसी काम में लगाते
थे। आरोप है कि इस पूरी प्रक्रिया में भ्रष्टाचार होता था। यही नहीं नामांतरण में
देरी की वजह से एक जमीन या मकान कई-कई बार बिक जाते थे, क्योंकि
रिकार्ड में पुराने मालिक का ही नाम चढ़ा होता था।