रायपुर। वित्त वर्ष 2022 के पहले तिमाही के लिए जारी जीडीपी के आंकड़ों पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने कहा है कि वित्तीय वर्ष 2019-20 में देश का कुल जीडीपी 35.85 लाख करोड का था, जो चालू वित्त वर्ष 2022-23 के प्रथम तिमाही में 36.85 लाख करोड़ है। अर्थात् तीन वर्षों में मात्र 2.8 प्रतिशत या कहे 0.92 प्रतिशत प्रतिवर्ष। यही नहीं देश के इतिहास में पहली बार मोदी राज में देश की अर्थव्यवस्था तेजी से उल्टे पांव भाग रही है। देश पर कर्ज का भार 2014 की तुलना में तीन गुना बढ़ा है। व्यापार संतुलन बिगड़ रहा है, निर्यात लगातार घट रहा है और आयात पर र्निभता बढ़ रही है। जीडीपी का ग्रोथ तो छोड़िए वर्ष 2020-21 और 2021-22 के दौरान जीडीपी संकुचित हुआ। जीडीपी के संकुचन का अर्थ देश में भुखमरी, गरीबी और बेरोजगारी की वृद्धि है। 2014 में भुखमरी इंडेक्स में भारत का स्थान 52 वें स्थान से खिसककर 116 देशों में 102 स्थान पर आ गया है। महंगाई और बेरोजगारी ऐतिहासिक रूप से शिखर पर है। थोक और खुदरा मंहगाई दर रिर्जव बैंक की तय उपरी सीमा से अधिक है, लेकिन भाजपाई मोदी-भक्ति और आत्ममुग्धता से बाहर ही नहीं निकल पा रहे हैं। प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने कहा है कि एक तरफ विगत 6 महीने से जीएसटी कलेक्शन लगातार 1.40 लाख करोड़ रुपए प्रतिमाह बना हुआ है, प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कर की वसूली रिकॉर्ड स्तर पर है लेकिन देश की अर्थव्यवस्था में इसका प्रभाव नहीं दिख रहा है। जीडीपी वृद्धि दर कम हो रहा है। स्पष्ट है कि मोदी सरकार की नीतियां केवल मुनाफाखोरी पर केंद्रित है। मोदी सरकार की सोच यही है कि जितनी महंगी वस्तुएं उतना ज्यादा कर संग्रहण और यही कारण है कि मोदी सरकार महंगाई नियंत्रित करना ही नहीं चाहती। खाद्य पदार्थो और आम जनता के दैनिक उपभोग की वस्तुओ पर कर का बोझ लगातार बढ़ाया जा रहा है। डीजल पर 8 गुना सेंट्रल एक्साइज, अनाज, दाल, चावल, आटा, मैदा, दूध, दही, पनीर पर जीएसटी लागू करना इस तथ्य को प्रमाणित करती है। एक तरफ मंहगाई और बेरोजगारी की दोहरी मार से जूझ रही आमजनता पर नित-नए करों का बोझ लाद रही है मोदी सरकार, वहीं दूसरी ओर कॉरपोरेट को हर साल 1.45 लाख करोड़ का टैक्स राहत, चंद पूंजीपतियों के 11 लाख करोड़ रुपए का लोन राइट ऑफ। मोदी सरकार के अनर्थशास्त्र और मित्र भक्ति की सजा पूरा देश भोग रहा है।