भोपाल : मध्य प्रदेश के लिए सबसे
खुशी की बात यह है कि यहां टाइगर रिजर्व के बाहर भी बाघों को संख्या बढ़ रही है।
बाघों की गणना हर 4 साल में एक बार होती
है। वर्ष 2006 से बाघों की संख्या का आंकड़ा देखे तो वर्ष 2010
में बाघों की संख्या 257 तक हो गई थी। इसे
बढ़ाने के लिए बाघों के उच्च स्तरीय संरक्षण और संवेदनशील प्रयास जरूरी थे। प्रदेश
में बाघों की आबादी 526 से बढ़कर 785 हो
गई है। यह देश में सर्वाधिक है। प्रदेश में चार-पांच सालों में 259 बाघ बढ़े हैं। बाघों की पुनर्स्थापना का काम एक अत्यंत कठिन काम था,
जो मप्र ने दिन-रात की मेहनत से कर दिखाया।
हर जिले में रेस्क्यू
स्क्वाड
मानव और वन्य प्राणी संघर्ष के प्रभावी प्रबंधन के लिए 16 रीजनल रेस्क्यू स्क्वाड और हर जिले में जिला स्तरीय रेस्क्यू स्क्वाड बनाए
गए। वन्य प्राणी अपराधों की जांच के लिए वन्य प्राणी अपराध की खोज में विशेषज्ञ 16
श्वान दलों का गठन किया गया। राज्य स्तरीय स्ट्राइक फोर्स ने पिछले
आठ वर्षों में वन्य प्राणी अपराध करने वाले 550 अपराधियों को
14 राज्यों से गिरफ्तार किया गया है।
वन्य प्राणी प्रबंधन के
लिए बजट की व्यवस्था
संरक्षित क्षेत्र के बाहर वन्य प्राणी प्राणी प्रबंधन के लिए बजट की
व्यवस्था की गई। वन्य प्राणी पर्यटन से होने वाली आय की स्थानीय समुदाय के साथ
साझेदारी की गई। इससे वन्य जीवों की लोकेशन खोजने, बचाव करने,
जंगल की आग का स्रोत पता लगाने और प्रभाव की तत्काल जानकारी जुटाने,
मानव और पशु संघर्ष के खतरे को टालने, वन्य
जीव संरक्षण कानून का पालन करने में मदद मिल रही है।
बाघ प्रदेश
बनने के यह कारण
मध्य प्रदेश के बाघ प्रदेश बनने के चार मुख्य कारण है। पहला गांवों
का वैज्ञानिक विस्थापना वर्ष 2010 से 2022 तक टाइगर रिजर्व में बसे छोटे-खोटे 200 गांव को
विस्थापित किया गया। सर्वाधिक 15 गांव सतपुड़ा टाइगर रिजर्व
से बाहर किए गाए। दूसरा है ट्रांसलीकेशन। कान्हा के बारहसिंगा, बायसन और वाइल्ड बेयर का ट्रांस लोकेशन कर दूसरे टाइगर रिजर्व में उन्हें
बताया गया। इससे बाघ के लिए भोजन आधार बढ़ा। तीसरा है हैबिटेट विकास। जंगल के बीच
में जो गांव और खेत खाली हुए वहां घास के मैदान और तालाब विकसित किए गए, जिससे शाकाहारी जानवरो की संख्या बढ़ी और बाघ के लिए आहार भी उपलब्ध हुआ।
ड्रोन से
सर्वेक्षण और निगरानी
सुरक्षा व्यवस्था में अभूतपूर्व बदलाव हुआ। पन्ना टाइगर रिजर्व में
ड्रोन से सर्वेक्षण और निगरानी की जा रही है। वाइल्ड
लाइफ क्राइम कंट्रोल कर अवैध शिकार को पूरी तरह से रोका गया। क्राइम इन्वेस्टीगेशन
और पेट्रोलिंग में तकनीकी का इस्तेमाल बढ़ाया मया। इसका सबसे अच्छा उदाहरण पन्ना
टाइगर रिजर्व है. जिसका अपना ड्रोन स्क्वाड है। हर महीने इसके संचालन की मासिक
कार्ययोजना तैयार की जाती है। वन्यजीव सुरक्षा के कारण तेंदुओं की संख्या में भी
मप्र देश में सबसे आगे है। देश में 12 हजार 852 तेंदुए हैं। अकेले मप्र में यह संख्या 4100 से
ज्यादा है। देश में तेंदुओं की आबादी औसतन 60% बढ़ी है. जबकि
प्रदेश में यह 80% है। देश में तेंदुओं की संख्या का 25%
अकेले मप्र में है।
कोर क्षेत्र
भी जैविक दबाव से मुक्त
काव्हा. पेंच, और कूनो पालपुर के कोर क्षेत्र
से समी गांवों को विस्थापित किया जा चुका है। सतपुड़ा टाइगर रिजर्व का 90 प्रतिशत से अधिक कोर क्षेत्र भी जैविक दबाव से मुक्त हो चुका है। मप्र ने
टाइगर राज्य का दर्जा हासिल करने के साथ ही राष्ट्रीय उद्यानों और संरक्षित
क्षेत्रों के प्रभावी प्रबंधन में भी देश में शीर्ष स्थान प्राप्त किया। सतपुड़ा
टाइगर रिजर्व को यूनेस्को की विश्व धरोहर की संभावित सूची में शामिल किया गया है।
विश्व के 75 प्रतिशत बाघ भारत
में
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजीव खन्ना और पीवी संजय कुमार की बेंच ने
शुक्रवार को बाघ संरक्षण के लिए केन्द्र सरकार की सराहना करते हुए इसे अच्छा कार्य
बताया है। देश में बाघों की संख्या वर्ष 2014 में 2226
से बढ़कर अब 3682 हो गई है। इसमें मध्यप्रदेश,
उत्तराखंड और महाराष्ट्र में बाघों की संख्या में अच्छी बढ़ोतरी हुई
है। अब सुप्रीम कोर्ट ने बाघ संरक्षण के लिए किए गए प्रयासों और सफलता के लिए
केन्द्र सरकार की सराहना करते हुए संतोष जाहिर किया है। विश्व के 75 प्रतिशत बाघ भारत में हैं।