बलौदाबाजार। गर्मी के मौसम में तरबूज की मांग हर घर में
होती है। यह रसीला फल न केवल स्वादिष्ट होता है, बल्कि शरीर
को ठंडक भी देता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि, इन तरबूजों
की खेती कहां होती है? छत्तीसगढ़ की जीवनदायिनी महानदी केवल
पानी की जरूरतें पूरी नहीं कर रही, बल्कि किसानों की आर्थिक
रीढ़ भी बनी हुई है। बलौदाबाजार जिले में हजारों किसान हर साल महानदी के किनारों
और नदी के भीतर पानी कम होने के बाद रेत पर तरबूज की खेती करते हैं।
देश-विदेश तक पहुंच रही फसल
बलौदाबाजार
जिले के कसडोल ब्लॉक में सबसे बेहतरीन क्वालिटी के तरबूज उगाए जाते हैं। यहां के
किसान 50 वर्षों से भी अधिक समय से इसकी खेती कर रहे हैं। किसान दिसंबर में रेत पर
नाली बनाकर इसकी बुआई शुरू कर देते हैं और फरवरी से अप्रैल के बीच फसल तैयार हो
जाती है। यहां के तरबूजों की मांग केवल छत्तीसगढ़ और भारत के विभिन्न राज्यों तक
सीमित नहीं है बल्कि नेपाल, पश्चिम बंगाल और दुबई जैसे खाड़ी
देशों तक भी पहुंच चुकी है। व्यापारी यहां से तरबूज खरीदकर मुंबई और कोलकाता के
निर्यातकों को भेजते हैं। जहां इन्हें बारकोड लगाकर विदेशों तक निर्यात किया जाता
है।
खेती से जुड़े लाभ और चुनौतियाँ
तरबूज के
साथ किसान खीरा, ककड़ी, खरबूजा और अन्य हरी सब्जियां भी उगाते हैं,
जिससे उनकी आमदनी में इजाफा होता है। हालांकि, इसकी खेती में कई जोखिम भी हैं। बेमौसम बारिश और बाढ़ के कारण फसल खराब हो
सकती है, जिससे किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। सबसे
बड़ी समस्या यह है कि, तरबूज की खेती के लिए कोई बीमा योजना
नहीं है और न ही बैंक से लोन मिलता है। यदि फसल खराब हो जाए, तो किसान कर्ज में डूब जाते हैं।
व्यापारी तय करते हैं तरबूज का मूल्य
देश के
किसानों की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि, उनकी फसल का मूल्य किसान नहीं बल्कि बिचौलिए तय करते हैं।
किसानों से 7 से 12 रुपये प्रति किलो
की दर से खरीदे गए तरबूज बाजार में ऊंचे दामों पर बेचे जाते हैं, जिससे किसानों को उचित लाभ नहीं मिल पाता।
सरकारी सहयोग की जरूरत
किसानों
ने सरकार से मांग की है कि, तरबूज की खेती के लिए कोई योजना लाई जाए, जिससे उन्हें आर्थिक सहायता और सुरक्षा मिल सके। यदि उन्हें सरकारी सहयोग
मिले तो यह खेती और भी लाभकारी साबित हो सकती है, जिससे
किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत होगी और देश के कृषि निर्यात में भी वृद्धि होगी।