बिलासपुर : भिक्षावृत्ति निवारण
अधिनियम को चुनौती देने वाली जनहित याचिका पर शासन ने कहा है कि सरकार मानसिक
रोगियों के साथ ही भिक्षुओं के लिए भी काम कर रही है. याचिकाकर्ता ने इस पर पूरे
अधिनियम को ही निरस्त करने की मांग की. याचिका में इस अधिनियम के दुरुपयोग का आरोप
लगाया गया है|
चीफ जस्टिस बोले- कार्यवाही नहीं
पुनर्वास की जरूरत
चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा की बेंच ने
प्रकरण की अगली सुनवाई दो सप्ताह बाद तय की है. एडवोकेट अमन सक्सेना ने इस संबन्ध
में दायर याचिका में कहा है कि भिक्षा वृत्ति निवारण अधिनियम 1973
की विभिन्न धाराएं पुलिस को किसी भी भिक्षुक को बगैर वारंट के
गिरफ्तार करने का अधिकार देती है. एक तरफ राज्य सरकार अलग-अलग योजनाओं के जरिए
भिक्षुओं के पुनर्वास और उन्हें अन्य सुविधाएं उपलब्ध कराने की बात करती है,
वहीं दूसरी तरफ उन्हें बगैर वारंट के गिरफ्तार किया जा रहा है.
भिक्षुओं के पुनर्वास के नाम पर केंद्र से भी खासा बजट जारी हो रहा है. कई राज्यों
में इस तरह के कानून पहले ही रद्द किए जा चुके हैं|
भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम को लेकर
हाईकोर्ट दायर की गई ये याचिका
याचिका में कहा गया है कि सूचना के
अधिकार के तहत मिली जानकारी के अनुसार किसी भी विभाग के पास भिक्षुओं के संबंध में
कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है. याचिका में मांग की गई है कि भिक्षावृत्ति निवारण
अधिनियम को असंवैधानिक घोषित किया जाए. सरकार को आदेश दिया जाए कि वह बताए कि
कितने भिक्षुकों को गिरफ्तार किया गया है. योजनाओं के संबंध में जारी राशि की
जानकारी सार्वजनिक की जाए. हाईकोर्ट एक कमेटी बनाकर मामले की जांच करवाकर रिपोर्ट
बुलवाए|