रायपुर। राज्यपाल अनुसुईया उइके द्वारा आदिवासियों के 32 प्रतिशत आरक्षण मिलने संबंधी बयान पर प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कहा कि कांग्रेस तो शुरू से ही आदिवासियों को 32 प्रतिशत आरक्षण देने की समर्थक रही है। कांग्रेस सरकार आदिवासी वर्ग के आरक्षण को यथावत रखने के लिये बिलासपुर उच्च न्यायालय के फैसले के विरोध में उच्चतम न्यायालय गयी है इसके लिये देश के तीन ख्यातिनाम वकीलों का पेनल लगाया गया है। कांग्रेस सरकार आदिवासी आरक्षण को यथावत रखने के हरसंभव संवैधानिक उपाय करेगी। आदिवासी समाज के आरक्षण की गुनाहगार भाजपा और पूर्ववर्ती रमन सरकार है। रमन सरकार के लापरवाही के कारण यह स्थिति बनी है आज प्रदेश के सभी विभागों में आरक्षण के अनिश्चितता केकारण सभी वर्ग के लोगों को नुकसान उठाना पड़ रहा, भर्तियां रद्द हो रही है। पूर्व की रमन सरकार ने ईमानदारी से एवं मजबूती से आदिवासी वर्ग के 32 प्रतिशत आरक्षण के पक्ष को न्यायालय में नहीं रखा जिसके चलते न्यायालय का फैसला 32 प्रतिशत आरक्षण के खिलाफ आया। पूर्व की रमन सरकार की आदिवासी विरोधी मानसिकता और बदनियती आरक्षण विरोधी चरित्र के चलते ही आदिवासी वर्ग 32 प्रतिशत आरक्षण के लाभ से वंचित हुआ। रमन सरकार ने जब आरक्षण को बढ़ाने का निर्णय किया उसी समय सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार राज्य सरकार को अदालत के सामने आरक्षण को 50 प्रतिशत से अधिक बढ़ाने की विशेष परिस्थितियों और कारण को बताना था। तत्कालीन रमन सरकार अपने इस दायित्व का सही ढंग से निर्वहन नहीं कर पायी। 2012 में बिलासपुर उच्च न्यायालय में 58 प्रतिशत आरक्षण के खिलाफ याचिका दायर हुई तब भी रमन सरकार ने सही ढंग से उन विशेष कारणों को प्रस्तुत नहीं किया जिसके कारण राज्य में आरक्षण को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 58 प्रतिशत किया गया। आरक्षण को बढ़ाने के लिये तत्कालीन सरकार ने तत्कालीन गृहमंत्री ननकी राम कंवर की अध्यक्षता में मंत्री मंडलीय समिति का भी गठन किया था। मुख्य सचिव की अध्यक्षता में भी कमेटी बनाई गयी थी। रमन सरकार ने उसकी अनुशंसा को भी अदालत के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया जिसका परिणाम है कि अदालत ने 58 प्रतिशत आरक्षण के फैसले को रद्द कर दिया। रमन सरकार की बदनीयती से यह स्थिति बनी है। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कहा कि कांग्रेस सरकार बिलासपुर उच्चन्यायालय के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गयी है। कांग्रेस आदिवासी समाज के हितो के लिये पूरी कानूनी लड़ाई लड़ेगी। हमें पूरा-पूरा भरोसा है राज्य के आदिवासी, अनुसूचित जाति, पिछड़ा वर्ग सभी के साथ न्याय होगा। उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षण का लाभ मिलेगा। पूर्ववर्ती रमन सरकार ने यदि 2012 में बिलासपुर कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत किये गये मुकदमे में सही तथ्य रखे होते तथा 2011 में आरक्षण को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 58 प्रतिशत करने के समय दूसरे वर्ग के आरक्षण की कटौती के खिलाफ निर्णय नहीं लिया होता तब आरक्षण की सीमा 50 से बढ़कर 58 हो ही रही थी तो उस समय उसे 4 प्रतिशत और बढ़ा देते सभी संतुष्ट होते कोर्ट जाने की नौबत नहीं आती और न आरक्षण रद्द होता।