रायपुर। भाजपा की राष्ट्रीय महामंत्री व प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी के बयान पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर ने कहा कि भाजपा प्रदेश प्रभारी डी पुरंदेश्वरी भूल रही है की केंद्र में भाजपा की सरकार बनने के बाद देश का किसान सबसे ज्यादा हताश और परेशान है तीन काले कृषि कानून के खिलाफ 14 माह से अधिक देशभर के किसान दिल्ली के सड़कों में बैठकर आंदोलन किए 700 किसानों की शहादत हो गई दुर्भाग्य की बात है भाजपा नेताओं ने किसान आंदोलन में शामिल किसानों को आतंकवादी नक्सली टुकड़े टुकड़े गैंग और राष्ट्रद्रोही तक कह डाले हैं 14 माह के बाद जब मोदी सरकार को लगा कि किसान हारने वाला नहीं है तब तीन काला कृषि कानून को वापस लिया है इससे स्पष्ट है कि भाजपा की प्राथमिकता में किसान नहीं है बल्कि किसानों की जमीन को अपने चंद पूंजीपति मित्रों को कैसे सौपे यह इनकी प्राथमिकता में है। प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर ने कहा कि रमन भाजपा ने छत्तीसगढ़ के किसानों को धान की कीमत 2100 रु प्रति क्विंटल और 300 रु बोनस देने का वादा किया था सत्ता मिलने के बाद किसानों को नही दिया। केंद्र की मोदी सरकार ने भी किसानों को वादाअनुसार स्वामीनाथन कमेटी के सिफारिश के अनुसार लागत मूल्य का डेढ़ गुना समर्थन मूल्य नहीं दिया। 2022 में किसानों की आय दुगनी करने का वादा किया था 2022 का सातवां महीना भी समाप्त होने को है किसानों के आमदनी में किसी प्रकार की बढ़ोतरी मोदी सरकार ने नहीं की है। केंद्र की सरकार समय पर किसानों को रसायनिक उर्वरक नहीं दे रही है कृषि यंत्रों पर मनमाना जीएसटी वसूल रही है बारदाना की आपूर्ति में बाधा पैदा कर रही है इसे समझ में आता है कि भाजपा किसानों का हितैषी नहीं है कांग्रेस प्रवक्ता धनंजय सिंह ठाकुर ने कहा कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सरकार के द्वारा किसानों को जब एक मुश्त धान की कीमत 2500 रु क्विंटल दिया गया। तो यही केंद्र कि मोदी सरकार ने उसमें नियम शर्ते लगाई और किसानों को एकमुश्त मिल रहे 2500 रु प्रति क्विंटल पर अड़ंगा लगाया।जिसके बाद छत्तीसगढ़ में राजीव गांधी किसान न्याय योजना के माध्यम से किसानों को धान के समर्थन मूल्य की अतिरिक्त राशि को चार किस्तों में दिया जा रहा है। छत्तीसगढ़ के किसानों को धान की कीमत दिया जा रहा है वह किसी भी भाजपा शासित राज्यों में नहीं मिल रहा है भाजपा शासित राज्यों में तो किसान अपनी उपज को समर्थन मूल्य से नीचे दाम पर बेचने को मजबूर हैं।