रायपुर| मोदी सरकार वनअधिकार कानून 2006 के प्रवधानों को
समाप्त करने की कवायद में लगी है।प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कहा कि अनुसूचित जनजाति और
अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006, जिसे जन सामान्य की
भाषा में वन अधिकार अधिनियम, 2006 के रूप में जाना
जाता है, एक ऐतिहासिक और
सर्वाधिक प्रगतिशील कानून है जिसे गहन संवाद और चर्चा के बाद संसद द्वारा
सर्वसम्मति और उत्साहपूर्वक पारित किया गया था। यह देश के वन क्षेत्रों में रहने
वाले आदिवासी, दलित और अन्य परिवारों को व्यक्तिगत
और सामुदायिक दोनों स्तर पर भूमि और आजीविका के अधिकार प्रदान करता है।
तत्कालीन कांग्रेस
की केंद्र सरकार ने अगस्त 2009 में, इस कानून के
अक्षरशः अनुपालन को सुनिश्चित करने के लिए, तत्कालीन पर्यावरण
और वन मंत्रालय ने एक परिपत्र जारी किया, जिसमें कहा गया था
कि वन संरक्षण अधिनियम,
1980 के तहत वन भूमि के अन्यत्र उपयोग के
लिए किसी भी मंजूरी पर तब तक विचार नहीं किया जाएगा जब तक वन अधिकार अधिनियम 2006 के अंतर्गत प्रदत्त
अधिकारों का सर्वप्रथम निपटान नहीं कर लिया जाता है। पारंपरिक रूप से वन क्षेत्रों
में रहने वाले आदिवासी और अन्य समुदायों के हितों के संरक्षण और संवर्धन के लिए यह
प्रावधान किया गया था। इस परिपत्र के अनुसार, पर्यावरण, वन और जलवायु
परिवर्तन मंत्रालय द्वारा वन और पर्यावरण मंजूरी पर कोई भी निर्णय लेने से पहले
आदिवासी और अन्य समुदायों के अधिकारों का निपटान करना जरुरी होगा। परिपत्र में कहा
गया है कि इस तरह के किसी भी प्रयोजन को कानून संवत होने के लिए प्रभावित परिवारों
की स्वतंत्र, पूर्व और सुविज्ञ सहमति प्राप्त करना
बाध्यकारी होगा। पीसीसी अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कहा कि हाल ही में मोदी सरकार द्वारा
जारी नियमों के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा अंतिम रुप से वन मंजूरी मिलने के बाद
वन अधिकारों के निपटारे की अनुमति दे दी है। जाहिर तौर पर यह प्रावधान कुछ चुनिंदा
लोगों के लिए 'व्यापार को आसान बनाना' के नाम पर किया गया
है। परंतु यह निर्णय उस विशाल जन समुदाय के लिए 'जीवन की सुगमता' को समाप्त कर देगा, जो आजीविका के लिए
वन भूमि पर निर्भर है। यह वन अधिकार अधिनियम, 2006 के मूल उद्देश्य और
वन भूमि के अन्यत्र उपयोग के प्रस्तावों पर विचार करते समय इसके सार्थक उपयोग के
उद्देश्य को नष्ट कर देता है। एक बार वन मंजूरी मिलने के बाद, बाकी सब कुछ एक
औपचारिकता मात्र बनकर रह जाएगा, और लगभग अपरिहार्य
रूप से किसी भी दावे को स्वीकार नहीं किया जाएगा और उसका निपटान नहीं किया जाएगा।
वन भूमि के अन्यत्र उपयोग की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए राज्य सरकारों पर
केंद्र की ओर से और भी अधिक दबाव होगा।
प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कहा कि वन संरक्षण अधिनियम 1980 को, वन अधिकार अधिनियम, 2006 के अनुरूप लागू करना सुनिश्चित करने के संसद द्वारा सौंपे गए उत्तरदायित्व को मोदी सरकार ने तिलांजलि दे दी है। इन नए नियमों को विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय तथा पर्यावरण वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय संबंधी संसद की स्थायी समितियों सहित अन्य संबद्ध हितधारकों से बिना कोई विचार विमर्श और चर्चा किए प्रख्यापित कर दिया गया है। इन नियमों के खिलाफ कांग्रेस संसद से ले कर सड़क तक लड़ाई लड़ेगी।