रायपुर| छत्तीसगढ़ का जनजातीय परिदृश्य अपने प्राकृतिक वातावरण से कितना जुड़ा हुआ है और इसे सहेजने को लेकर कितना सरोकार रखता है इसकी झलक आज राजनांदगांव के कलाकारों द्वारा दिखाये गये करमा नृत्य में मिली। इस नृत्य में करम डाल की पूजा कर इसे आंगन में स्थापित करते हैं फिर देवता की पूजा अर्चना करते हैं और नृत्य आरंभ होता है। अनुश्रुति है कि राजा करम सेन की स्मृति में यह नृत्य किया जाता है। यह नृत्य छत्तीसगढ़ के सबसे लोकप्रिय नृत्यों में से एक है। पारंपरिक छत्तीसगढ़ी वाद्ययंत्रों के साथ जब लोककलाकारों के कदम थिरके तो लोग काफी आनंदित हो गये। छत्तीसगढ़ के नृत्य परंपरा की समृद्धि की झलक इस सुंदर नृत्य में दिखी। खासतौर पर इस नृत्य के माध्यम से दिया जाने वाला संदेश बेहद महत्वपूर्ण हैं। अपने प्राकृतिक परिवेश को सहेजकर और उससे अनुराग रखकर ही हम बेहतर जीवन जी सकते हैं। प्रकृति के सामीप्य में और इसके राग में स्वयं को रखकर थिरकना ही करमा नृत्य का मूल संदेश है। उल्लेखनीय है कि राष्ट्रीय आदिवासी नृत्य महोत्सव के माध्यम से दर्शकों ने न केवल देश भर में प्रचलित नृत्य के विविध रूप देखे अपितु छत्तीसगढ़ की समृद्ध नृत्य परंपरा और इसके पीछे छिपे गहरे संदेश को भी लोगों ने देखा। नृत्य के माध्यम से छत्तीसगढ़ी की चटख रंगों वाली लोककलाकारों की वेशभूषा और आकर्षण आभूषण भी दिखे। सैकड़ों सालों से इस सुंदर नृत्य का आयोजन किया जा रहा है और हर बार यह उतना ही आनंदित करता है और लोगों का मन मोह लेता है।