रायपुर। कांग्रेस के द्वारा किये गये ट्वीट जिसमें भारत जोड़ो पूर्ण होने के बाद देश में शांति की कामना की गयी है इस ट्वीट को देखने के बाद भाजपा और आरएसएस का भड़कना चोर की दाढ़ी में तिनका है। कांग्रेस अपने नेता राहुल गांधी की अगुवाई में देश की एकता अखंडता को अक्षुण रखने, देश में भाई चारा की स्थापना करने, महंगाई, बेरोजगारी के खिलाफ जनता की तकलीफों को आवाज देने भारत यात्रा निकाल रही है। इस यात्रा के 5 दिन पूरे हो गये है। यह यात्रा 145 दिन पूरी होगी। इस यात्रा के बाद देश की एकता में बाधक अतिवादी संगठनों के मंसूबे निश्चित ध्वस्त होंगे। देश का बच्चा-बच्चा जानता है कि आरएसएस अखंड भारत को स्वप्न दिखाता है लेकिन वर्तमान भारत की एकता के खिलाफ आचरण करता है वह देश की गंगा जमुनी तहजीब के खिलाफ काम करती है। आरएसएस आज से नही आजादी के समय देश में विघटन और अंग्रेजो के फूट डालों के एजेन्डे पर काम करती रही है। कांग्रेस जब आजादी की लड़ाई लड़ रही थी तब भी आरएसएस का मूल संगठन मुस्लिम लीग के साथ मिलकर देश की आजादी की लड़ाई के खिलाफ अंग्रेजों की चाटुकारिता है लेकिन उनका तथ्य नही है। प्रदेश कांग्रेस संचार विभाग सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि आरएसएस के प्रवक्ता मनमोहन वैद्य, राहुल गांधी के पूर्वजों पर टिप्पणी करने के पहले देश के लिये राहुल गांधी के पूर्वजों के द्वारा किये गये त्याग और बलिदान को देख ले, फिर कोई बयानबाजी वे और उनका कथित देश भक्त संगठन राहुल गांधी के पूर्वजों और कांग्रेस के द्वारा किये गये त्याग बलिदान का दशांश भी देशहित में किया हो तभी बोलने का साहस दिखाये। जिस राहुल के पिता, दादी ने देश की अखंडता के लिये प्राण न्यौछावर किये हो, जिनके पिता के नाना ने देश की आजादी के लिये अपनी जवानी के 16 साल अंग्रजी जेल सलाखों के पीछे बिताये हो, उन राहुल को देशभक्ति का पाठ वह आरएसएस मत सिखाये, जिसके संस्थापक अंग्रेजी शासको को भारत का भाग्य विधाता बताते रहे हो। मनमोहन वैद्य बता सकते है आरएसएस का गठन 1925 में हुआ देश आजाद 1947 में हुआ 22 सालों में देश की आजादी में आरएसएस का क्या योगदान था? प्रदेश कांग्रेस संचार विभाग सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि आरएसएस के लोगों ने भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध किया, नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आजाद हिंद फौज के खिलाफ अंग्रेजी सेना में भर्ती होने देश के युवाओं से अपील करते रहे। स्थापना से लेकर आज तक आरएसएस नफरती एजेंडे पर ही काम करते रही है। नफ़रत और हिंसा इनके राजनैतिक हथियार हैं। ऐतिहासिक तथ्य है कि आजादी की लड़ाई के दौरान जब पूरा देश गांधी, नेहरू, सरदार पटेल जैसे नेताओं के नेतृत्व में अंग्रेजो के खिलाफ लड़ रहा था, आरएसएस के लोग मुस्लिम लीग के साथ मिलकर अंग्रेजों के सहयोगी की भूमिका में थे। गांधी जी की हत्या के बाद सरदार वल्लभ भाई पटेल ने आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया था। आर एस एस की स्थापना से लेकर आज तक इनका चरित्र और क्रियाकलाप राजनैतिक लाभ के लिए नफरत और उन्माद फैलाने षड्यंत्र का ही रहा है। ना कोई नियम ना संविधान ना पंजीयन ताकि किसी षड़यंत्र के उजागर होने पर किसी भी व्यक्ति को अपने से संबंधित या पृथक बता सके। सांस्कृतिक संगठन होने का दावा इनका राजनीतिक पाखंड है। असलीयत यह है कि पर्दे के पीछे रहकर षडयंत्र रचना और रिमोट कंट्रोल से सत्ता चलाना है।