रायपुर। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कहा कि मोदी सरकार राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत गरीबों के लिए मुफ्त 5 किलो अनाज को ऐतिहासिक निर्णय बताकर वाहवाही का झूठा ढोल पीट रही है। वास्तविकता यह है कि इस निर्णय की मुख्य लाभार्थी मोदी सरकार स्वयं है, जिसे 1 लाख करोड़ रुपये से अधिक की बचत होगी, न कि राशन कार्ड धारक, जिनके खर्च में वृद्धि होगी। उदाहरण के लिए मान लीजिए कि एक व्यक्ति को पहले 10 किलोग्राम गेहूं मिलता था। उसे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत 5 किलोग्राम गेहूं के लिए 10 रुपये का भुगतान करना होता था और प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 5 किलोग्राम गेहूं मुफ्त मिलता था। अब राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत मिलने वाले गेहूं पर उसके 10 रुपए बचेंगे, लेकिन बाकी का 5 किलोग्राम गेहूं खुले बाजार से खरीदना पड़ेगा जिसकी कीमत लगभग 150-175 रुपए है। अब पांच लोगों का एक परिवार हर महीने लगभग 750 रुपए अतिरिक्त खर्च करने को मजबूर होगा, जिससे कि हर साल लगभग 9,000 रुपए का अधिक भार उन पर पड़ेगा। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कहा कि गंभीर आर्थिक बदहाली के कारण मोदी सरकार को कोविड-19 महामारी के दौरान अतिरिक्त राशन देने के लिए मजबूर होना पड़ा था। यह आर्थिक बदहाली आज भी बनी हुई है। यूपीए सरकार के समय की तुलना में आज हर बुनियादी आवश्यकता अधिक महंगी है, अधिकांश भारतीयों की आय में वृद्धि नहीं हुई है, और बेरोजगारी रिकॉर्ड स्तर पर है। “हंगर वॉच“ सर्वेक्षण में पाया गया है कि 80 प्रतिशत लोग किसी न किसी रूप में खाद्य असुरक्षा का अनुभव कर रहे हैं। भारत आज ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2022 के अनुसार 121 देशों की सूची में 107वें स्थान पर है।प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष मोहन मरकाम ने कहा कि यूपीए सरकार द्वारा सितंबर 2013 में गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री (वर्तमान प्रधानमंत्री मोदी) की आपत्तियों के बावजूद भोजन के अधिकार को कानूनी जामा पहनाकर यह सुनिश्चित किया गया कि कोई भी भारतीय भूखा न रहे। अर्थव्यवस्था के कुप्रबंधन के कारण पैदा हुई व्यापक संकट की वर्तमान स्थिति में मोदी सरकार को इस सिद्धांत (कोई भारतीय भूखा न रहे) की कसौटी पर खरा उतरना चाहिए। मोदी सरकार को यह याद दिलाने की आवश्यकता है कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा क़ानून के तहत राशन प्रदान करना भारत के लोगों को उपहार नहीं है, बल्कि यह उनका अधिकार है। कांग्रेस मांग करती है कि मोदी सरकार से प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना को बंद करके बचाए गए धन का उपयोग निम्नलिखित तीन तरीकों से खाद्य सुरक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए करने का आह्वान करती हैः लगभग 10 करोड़ ऐसे लोग, जो 2021 की जनगणना में अत्यधिक देरी के कारण राशन कार्ड से वंचित रह गए हैं, उन्हें तत्काल इस प्रणाली के अंतर्गत लाया जाए। सर्वोच्च न्यायालय ने ये आदेश दिया है कि राशन कार्ड न होने पर भी सभी प्रवासी श्रमिकों को राशन उपलब्ध कराया जाए, साथ ही भूख से लड़ने के अन्य उपाय भी किए जाएं। मोदी सरकार जून 2021 से आज तक सर्वोच्च न्यायालय के इस आदेश का पालन करने में विफल रही है। सर्वोच्च न्यायालय के इस आदेश का अविलंब अनुपालन किया जाए। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम मातृत्व हक के रूप में महिलाओं को प्रति बच्चा 6,000 रुपये का प्रावधान करता है। लेकिन सरकार ने इसे अवैध ढंग से केवल पहले बच्चे के लिए 5,000 रुपये तक सीमित कर दिया है। मोदी सरकार को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम का उल्लंघन तुरंत बंद करना चाहिए। 2013 में मुख्यमंत्री मोदी ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा क़ानून का विरोध किया था। मनरेगा से लेकर राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा क़ानून तक मुख्यमंत्री मोदी ने जन-समर्थक यूपीए नीतियों का विरोध किया था लेकिन प्रधानमंत्री मोदी उनका श्रेय लेते हैं। वे सच में ‘यू-टर्न’ के उस्ताद हैं।