June 15, 2022


105 घंटे के कड़े संघर्ष में मौत के मुंह से राहुल को सकुशल लेकर लौटी NDRF और सेना की संयुक्त रेस्क्यू टीम

छत्तीसगढ़ में सफल हुआ देश का सबसे बड़ा रेस्क्यू ऑपरेशन

सार संक्षेप

  • हर तरफ बिखरी खुशियां, राहुल को मिली नई जिंदगी
  • सुरंग से बाहर आते ही राहुल ने खोली आंखें.. और एक बार फिर दुनिया देखी

रायपुर। 105 घंटे की मशक्कत के बाद बोरवेल में फंसे राहुल को आखिरकार बचा लिया गया। राहुल को बचाने के लिए करीब 65 फीट नीचे गड्ढे में उतरी रेस्क्यू टीम ने काफी मशक्कत के बाद राहुल को मंगलवार 14 जून 2022 की देर रात सुरक्षित बाहर निकाल लिया। 

जैसे ही राहुल सुरंग से बाहर आया। उसने अपनी आंखें खोलीं और एक बार फिर दुनिया को देखा। यह पल सभी के लिए बेहद खुशी का पल था। पूरा इलाका राहुलमय हो गया। 

मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बोरवेल में फंसे राहुल को बचाने के लिए जिला प्रशासन को विशेष निर्देश दिए थे। आखिरकार कलेक्टर जितेंद्र कुमार शुक्ला के नेतृत्व में देश का सबसे बड़ा बचाव अभियान चलाया गया। सुरंग के रास्ते में बार-बार मजबूत चट्टान आने से बचाव दल ने 4 दिन तक चले इस ऑपरेशन को अंजाम देकर मासूम राहुल को नया जीवन दिया। इस रेस्क्यू की सफलता से पूरे देश में खुशी का माहौल बन गया। 

मेडिकल टीम ने प्राथमिक स्वास्थ्य जांच की

राहुल को निकालने के बाद मौके पर मौजूद मेडिकल टीम ने प्राथमिक स्वास्थ्य जांच की। मुख्यमंत्री के निर्देश पर राहुल को तुरंत बेहतर इलाज के लिए ग्रीन कॉरिडोर बनाकर अपोलो अस्पताल बिलासपुर भेजा गया।

जानें क्या है पूरा मामला 

छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चांपा जिले के मलखरौदा प्रखंड के ग्राम पिहरीद में 11 वर्षीय बालक राहुल साहू अपने घर के पास खुले बोरवेल में गिरकर फंस गया था। 

10 जून 2022 की दोपहर करीब दो बजे अचानक हुई घटना की खबर मिलते ही कलेक्टर जितेंद्र कुमार शुक्ला के नेतृत्व में जिला प्रशासन की टीम तैनात कर दी गयी। 

समय पर ऑक्सीजन की व्यवस्था की गई और उसे बच्चे तक पहुंचाया गया। कैमरा लगाकर बच्चे की गतिविधियों पर नजर रखने के साथ ही उसके परिवार वाले बोरवेल में फंसे राहुल पर नजर रख कर उसका मनोबल बढ़ा रहे थे।

उसे जूस, केला और अन्य खाद्य सामग्री भी दी जा रही थी। पल-पल निगरानी करने वाले विशेष कैमरों से ऑक्सीजन की आपूर्ति भी की जा रही थी। 

आपातकालीन चिकित्सा व्यवस्था और एम्बुलेंस भी तैनात किए गए थे। राज्य आपदा प्रबंधन टीम के अलावा, राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन (एनडीआरएफ) की टीम ओडिशा के कटक और भिलाई से आई थी और बचाव में शामिल थी। 

कर्नल चिन्मय पारीक के नेतृत्व में काम कर रही थी सेना

सेना के कर्नल चिन्मय पारीक अपनी टीम के साथ इस मिशन में लगे हुए थे। बच्चे को सकुशल बाहर निकालने का हर संभव प्रयास किया गया। देश के सबसे बड़े रेस्क्यू के पहले दिन 10 जून की रात को मैनुअल क्रेेन के जरिए राहुल को रस्सी से बाहर निकालने का प्रयास किया गया। राहुल के रस्सी हथियाने जैसी कोई प्रतिक्रिया नहीं देने पर परिवार वालों की सहमति और एनडीआरएफ के फैसले के बाद तय हुआ कि बोरवेल के किनारे तक खुदाई कर रेस्क्यू किया जाए। 

रात करीब 12 बजे से फिर अलग-अलग मशीनों से खुदाई शुरू की गई। करीब 60 फीट की खुदाई के बाद पहला रास्ता तैयार किया गया। जिला प्रशासन की टीम ने एनडीआरएफ और सेना के साथ मिलकर ड्रिलिंग कर बोरवेल तक पहुंचने के लिए सुरंग बनाई। 

सुरंग खोदने के दौरान कई मजबूत रॉक संरचनाओं द्वारा अभियान में बाधा उत्पन्न हुई थी। बिलासपुर से अधिक क्षमता की ड्रिलिंग मशीन मंगवाने के बाद राहुल को काफी मशक्कत के बाद एहतियाती कदम उठाते हुए पहुंचा दिया गया। 

चिकित्सकों ने मौके पर ही स्वास्थ्य जांच की और बेहतर इलाज के लिए ग्रीन कॉरिडोर बनाकर अपोलो अस्पताल ले जाया गया। हालांकि 104 घंटे से अधिक समय तक चले इस रेस्क्यू ऑपरेशन में राहुल साहू को जिंदा बाहर निकालने के बाद सभी ने राहत की सांस ली।

माता पिता ने सभी का धन्यवाद किया 

पिता लाला साहू, माता गीता साहू सहित परिवार के सदस्यों ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सहित कलेक्टर, जिला प्रशासन के अधिकारियों, जनप्रतिनिधियों सहित एनडीआरएफ, सेना, एसडीआरएफ सहित सभी का विशेष धन्यवाद किया।

कलेक्टर समेत तमाम अधिकारी दिन रात रहे तैयार

जहां राहुल की सलामती के लिए दिन-रात दुआओं का दौर चला। वहीं इस अभियान के पूरा होने तक मौके पर कलेक्टर जितेंद्र कुमार शुक्ला, पुलिस अधीक्षक विजय अग्रवाल समेत तमाम अधिकारी रातभर मौके पर ही रेस्क्यू की निगरानी कर रहे थे। 

104 घंटे से अधिक समय तक चले इस रेस्क्यू ऑपरेशन में राहुल के सकुशल बाहर आने की घटना किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं थी। कलेक्टर शुक्ल ने कहा कि बोरवेल में फंसने के कारण लड़के को बचाना आसान काम नहीं था। सभी उन्हें सकुशल बाहर निकालने का प्रयास कर रहे थे। 

विपरीत परिस्थितियों के कारण जो कुछ भी संभव हुआ, निर्णय एनडीआरएफ और परिवार के सदस्यों के साथ मिलकर लिए गए। कलेक्टर ने जिला अधिकारियों सहित नागरिकों से भी अपील की है कि वे किसी भी स्थान पर बोरवेल खुला न रखें ताकि ऐसी घटनाएं दोबारा न हो। अपने छोटे बच्चों को कभी भी ऐसी जगहों पर न जाने दें और अपने बच्चों को निगरानी में रखें। 

काफी चिंतित थे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल 

जांजगीर में बोरवेल में गिरे बच्चे को लेकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल काफी चिंतित थे। यही वजह है कि वे लगातार रेस्क्यू को अपडेट करते रहे। उन्होंने राहुल को सकुशल बाहर निकालने के निर्देश दिए थे। उन्होंने राहुल के पिता और मां से वीडियो कॉल के जरिए बात भी की। उन्होंने राहुल को आउट करने के लिए हर संभव मदद का आश्वासन दिया था। मुख्यमंत्री के निर्देश पर ही राज्य स्तर पर वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा पूरे विकास की निगरानी की जा रही थी।

रेस्क्यू टीम के सामने थी कड़ी चुनौतियां

बोरवेल में फंसे राहुल को बचाने के लिए रेस्क्यू टीम को हर बार कड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा। बड़ी-बड़ी चट्टानें राहुल के बचाव में रुकावट डालती रहीं, इस बीच बचाव दल को हर बार अपनी योजना बदलने पर नई चुनौतियों का सामना करना पड़ा। मशीनों को बदलना पड़ा। चट्टानों के कारण ही 65 फीट गहरी और राहुल तक पहुंचकर क्षैतिज सुरंग तैयार करने में 4 दिन का समय लगा। भारी गर्मी और उमस के बीच बचाव दल को लेटकर टॉर्च की रोशनी में काम करना पड़ा। इसके बावजूद न तो अभियान खत्म हुआ और न ही जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष कर रहे राहुल ने हार मानी।


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