रायपुर। छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने पीएससी में पुछे गए सवाल को लेकर भाजपा द्वारा लगाए गए भ्रष्टाचार के तथ्यहीन आरोप पर पलटवार करते हुए कहा है कि छत्तीसगढ़ राज्य सेवा आयोग राज्य की सर्वोच्च संवैधानिक एजेंसी है, एक स्वायत्तशासी एजेंसी। प्रश्न पत्र तैयार करना पीएससी का अपना अधिकार है। इसमें सरकार का कोई दखल नहीं रहता है। यदि सवाल को लेकर कोई आपत्ति है तो आपत्ति सही पाए जाने पर प्रश्न विलोपित करने या सभी प्रतिभागियों को बोनस अंक देने का प्रावधान पूरे देश में एक समान है, इसे लेकर पीएससी पर भ्रष्टाचार का तथ्यहीन आरोप लगाना भाजपा नेताओं के मानसिक दिवालियापन का प्रमाण है। अन्याय तो भाजपा के रमन राज के कुशासन में होता था, 15 साल में केवल 9 परीक्षाएं 6 बार तो दी ही नहीं गई। 2003 के पीएससी विवाद के बाद 2007 तक लगातार चार साल जीरो ईयर घोषित रहा। इस दौरान लगातार 4 सालों तक परीक्षा नहीं होने से कई प्रतियोगी उम्र सीमा अधिक हो जाने के कारण परीक्षा से वंचित हो गए, उन आंदोलनरत प्रतिभागियों के उपर भी रमन सरकार ने लाठीचार्ज कर अपराधिक प्रकरण दर्ज कराए थे। रमन सरकार के दौरान 15 साल तक लगातार पीएससी की भर्तीयों में अनियमितताओं की शिकायत आती रही, वर्षा डोगरे प्रकरण भी सर्वविदित है। व्यवसायिक शिक्षा मंडल द्वारा किए जाने वाले भर्ती और प्रवेश परीक्षाओं में भी गड़बड़ियां की जाती रही। वर्तमान में भूपेश सरकार में 4 भर्ती प्रक्रिया पूर्ण कर यह पांचवीं बार की परीक्षा आयोजित हुई है। प्रदेश कांग्रेस प्रवक्ता सुरेंद्र वर्मा ने कहा है कि देशभर के लगभग सभी राज्यों के अधीन राज्य सेवा परीक्षाओं में राज्य की महत्वपूर्ण योजनाओं, सरकार के कार्यक्रमों और मुख्यमंत्री से संबंधित प्रश्न उसे जाने की परंपरा पूर्व से ही रहा है, राज्य के संदर्भ में समसामयिक घटनाक्रम में अगर भूपेश सरकार से जुड़े सवाल पूछे गए तो इसमें गलत क्या है? आजादी की लड़ाई से लेकर देश के नवनिर्माण में कांग्रेस और कांग्रेसी नेताओं योगदान देश का इतिहास है, इसे अलग कर पाना संभव ही नहीं। छत्तीसगढ़ में तो भूपेश सरकार छत्तीसगढ़ की समृद्धि और स्वाभिमान के पर्याय बन चुके हैं। UPSC की परीक्षा में जब बंगाल विधानसभा चुनाव के दौरान हिंसा को लक्ष्य करके प्रश्न पूछे गए तब भाजपाइयों की नैतिकता कहां थी? इरादतन "टूल किट" जैसे प्रकरण को यूपीएससी के प्रश्नपत्र में शामिल किया गया तब भी भाजपाइयों की नैतिकता नहीं जागी? बंगाल पीएससी की परीक्षा में तो यह भी प्रश्न पूछा गया था कि कौन से क्रांतिकारी ने जिन्होंने अंग्रेजों से लिखित माफीनामा लिखकर जेल से रिहा हुए और अंग्रेजों से पेंशन प्राप्त की, तब माफीवीर सावरकर के अनुयाई मौन थे।