March 29, 2024


शीतला अष्टमी व्रत 2 अप्रैल को, बासी प्रसाद खाएंगे तो इन बीमारियों से मिलेगी मुक्ति

हिंदू धर्म में शीतला माता को स्वच्छता एवं आरोग्य की देवी माना जाता है। पौराणिक मान्यता है कि शीतला अष्टमी का व्रत करने से भक्तों को आरोग्य की प्राप्ति होती है। पंडित चंद्रशेखर मलतारे के मुताबिक, शीतला अष्टमी के दिन बासी खाने का भोग लगाने से कई गंभीर बीमारियों से बचा जा सकता है। यहां जानें इस व्रत के बारे में विस्तार से।

शीतला माता पूजा मुहूर्त

हिंदू पंचांग के अनुसार, चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 01 अप्रैल 2024 को रात 09.09 बजे शुरू होगी और इस तिथि का समापन 02 अप्रैल को रात 08.08 बजे होगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार, शीतला अष्टमी का व्रत 02 अप्रैल 2024 को ही मनाना उचित होगा। इस दौरान पूजा का शुभ मुहूर्त सुबह 06.10 बजे से शाम 06.40 बजे तक रहेगा। देश में कुछ स्थानों पर शीतला सप्तमी तिथि पर भी शीतला माता की पूजा की जाती है। शीतला सप्तमी व्रत 1 अप्रैल को रखा जाएगा।

शीतला अष्टमी को लेकर पौराणिक कथा

एक दिन वृद्ध औरत और उसकी दो बहुओं ने शीतला माता को प्रसन्न करने के लिए उपवास रखा था। दोनों बहुओं ने व्रत के विधान के अनुसार, माता शीतला के भोग के लिए एक दिन पहले ही बासी भोग तैयार कर लिया था, लेकिन दोनों बहुओं के बच्चे छोटे थे, इसलिए उन्होंने सोचा कि कहीं बासी खाना उनके बच्चों को नुकसान न कर जाए। इसलिए उन्होंने बच्चों के लिए ताजा खाना तैयार कर दिया, लेकिन जब शीतला माता के पूजन के बाद घर वापस आई तो देखा कि दोनों बच्चे मृत अवस्था में थे।

ये बात जब सास को पता चली तो उन्होंने बताया कि यह शीतला माता को नाराज करने के कारण हुआ है। तब सास ने कहा कि जब तक यह बच्चे जीवित न हो जाएं, तुम दोनों घर वापस मत आना। इसके बाद दोनों बहुएं मृत बच्चों को लेकर भटकने लगी। तभी उन्हें एक पेड़ के नीचे दो बहनें बैठी मिलीं, जिनके नाम ओरी और शीतला था।

वह दोनों बहनें गंदगी और जूं के कारण बहुत परेशान थीं। बहुओं ने उनकी मदद करके हुए उनकी सफाई की, जिससे शीतला और ओरी ने प्रसन्न होकर दोनों को पुत्रवती होने का आशीर्वाद दिया। तब उन दोनों बहुओं ने अपना पूरा दुख सुनाया। इसके बाद शीतला माता ने सामने प्रकट होकर उन्हें शीतला अष्टमी तिथि का महत्व बताया। इसके बाद दोनों बहुओं ने माता शीतला से माफी मांगी और ऐसी गलती फिर कभी न करने का प्रण लिया। आखिर में माता शीतला ने प्रसन्न होकर दोनों बच्चों को पुनर्जीवित कर दिया।


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